KAHANIYAN THINGS TO KNOW BEFORE YOU BUY

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गीता स्कूल जाती थी और पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। वह अपने माता-पिता की मदद करने के लिए घर के काम भी करती थी।

वह अपनी जमीन से अनाज उगाता था और उसे बेचकर अपने परिवार का गुजारा करता था। लेकिन उसकी आमदनी बहुत कम थी। 

मित्रों, ईश्वर ने हमें जो दिया है उसी में संतुष्ट रहना आवश्यक है। अक्सर देखा है कि हमें हमेशा भगवान से शिकायत रहती है कि हमें यह नहीं दिया, वह नहीं दिया। अगर हम थोड़ा रुककर यह सोचें कि उस दयालु परमात्मा ने हमें कितना कुछ दिया है। तो हम सिर्फ उसका धन्यवाद ही देंगे। 

कुछ ही दिनों बाद वो शेर जंगल में शिकारी द्वारा बिछाए गए एक जाल में फंस जाता है। शेर उस जाल से निकलने की बहुत कोशिश करता है पर वो निकल नहीं पाता। जिसके बाद वो दहाड़ना शुरू कर देता है। ये आवाज़ उस चूहे तक पहुंच जाती है और वो शेर को बचाने के लिए वहाँ पहुँच जाता है।

किसान बोला, नहीं प्रभु, मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है। आपसे मैं क्या मांगू? आपने मुझे सबकुछ दिया। दो हाथ पैर खेती करके अन्न उगाने के लिए, जमीन, भूख लगने पर भोजन, तन ढंकने को पर्याप्त मात्रा में वस्त्र। सिर्फ एक कमी लगी मुझे अपने जीवन में की सीमित मात्रा में अन्न धन होने के कारण मैं अपने द्वार पर आये भूखे व जरूरतमंद लोगों की सहायता नहीं कर सका। 

श्याम भी उनकी संगति में आ गया और वह भी धीरे-धीरे स्कूल जाने से read more बचता रहता।

हमारे समाज में ऐसे अनेक महापुरुषों के उदहारण मिल जायेगे तो की इस समाज के लिए जिये जिस कारण से उन्हें हर कोई जानता है जो सिर्फ अपने लिए जीते है वे अपने जीवन को एक निश्चित ही दायरे में जिक्र चले जाते है फिर उनके बाद उन्हें कोई नही याद करता जबकि जो लोग समाज के लिए जीते है वे इतिहास बनाकर भले ही इस दुनिया से चले जाते हो लेकिन वे हमेसा ही सबके लिए में याद रहते है,

यह सब जानने के बाद सेठ का पत्थर का दिल भी अब मोम की तरह पिघल गया। सेठ को अपने किए पर पछतावा होने लगा। सेठ ने अपने आपको याद दिलाया कि कैसे उसने एक शरीफ और सच्चे आदमी को ज्यादा काम करवा कर भी उसको पूरा पैसा नहीं दिया और जिसको गले से लगाना चाहिए था उसे ठोकर मार कर भगाता रहा।

एक बार मेंढकों का एक दल पानी की तलाश में जंगल में घूम रहा था। अचानक, समूह में दो मेंढक गलती से एक गहरे गड्ढे में गिर गए। दल के दूसरे मेंढक गड्ढे में अपने दोस्तों के लिए चिंतित थे। गड्ढा कितना गहरा था, यह देखकर उन्होंने दो मेंढकों से कहा कि गहरे गड्ढे से बचने का कोई रास्ता नहीं है और कोशिश करने का कोई मतलब नहीं है।

लोमड़ी तो जल्दी-जल्दी खिचड़ी खाने लगी, लेकिन सारस की लम्बी चोंच में खिचड़ी ना आई। उसे खिचड़ी ना खाते देख लोमड़ी मन ही मन बहुत खुश हुई और झूठी चिंता दिखाते हुए सारस से पूछने लगी कि क्या बात है तुम्हे पसंद नहीं आया?

नैतिक शिक्षा – सदैव सत्य बोलना चाहिए और सत्य का साथ देना चाहिए। व्यक्ति का स्वभाव ही उस व्यक्ति का परिचय है।

एक जंगल में एक लोमड़ी और सारस रहते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी। एक दिन लोमड़ी ने सारस को देखा और वह कहने लगी, “सारस भाई, राम-राम, कैसे हो?

तो साधू की बातो को सुनकर हामी भर दी और किसान बोला “हां महाराज हमारे साथ कुछ ऐसा ही है अब आप ही चाहो तो आपके आशीर्वाद से शायद हमारी किस्मत बदल जाए”

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